200 फाइटर जेट, 330 एयर स्ट्राइक से उड़े परखच्चे … सब पता था, फिर इजराइल से क्यों पिटा ईरान?
फिर इजराइल से क्यों पिटा ईरान?

Iran-Israel War:- इजरायल ने ईरान पर सुबह साढ़े तीन बजे एयर स्ट्राइक करनी शुरू कर दी. वो ताबड़तोड़ बम और मिसाइलें बरसाता रहा और ईरान बेबस हो गया. उसका अच्छा-खासा नुकसान हुआ लेकिन सवाल ये है कि न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर खतरा ईरान भी भांप चुका था, तो वो इस हमले को समय पर रोक क्यों नहीं सका?
ये सवाल जितना अहम है, इसके जवाब के लिए उतनी ही परतें खंगाली जा सकती हैं. ईरान को यह अनुमान था कि इजरायल कभी न कभी हमला करेगा, खासकर जब ईरान समर्थित मिलिशिया और ड्रोन हमले तेज़ हो गए थे. हालांकि यह जानना कि हमला कब, कहां और कैसे होगा, ये आसान नहीं है. इजरायल ने इस फर्क को बखूबी समझा और इसका फायदा उठाया. खुफिया तंत्र को भी कहीं न कहीं ऐसे हमले के बारे में इनपुट रहे होंगे, फिर ईरान इसे रोकने में नाकाम क्यों हो गया?
इजरायल का सरप्राइज और मल्टी-लेयर हमला:-
इजरायल की सैन्य रणनीति ‘सरप्राइज़ डॉक्ट्रिन’ पर आधारित है यानि दुश्मन को वो मनोवैज्ञानिक रूप से भ्रमित कर सकता है. ऐसे में वो बहुत कम समय में अधिकतम नुकसान पहुंचा सकता है. एक ही समय में 200 से अधिक विमान उड़ाकर 100 से ज्यादा टारगेट्स पर हमले करने की वजह से ईरान तैयार नहीं रहा होगा. 330 से ज्यादा हवाई हथियारों का इस्तेमाल इजराइल ने ‘ब्लिट्जक्रिग स्टाइल’ में किया, जिसकी वजह से दुश्मन को सोचने का मौका भी नहीं मिला.
इजरायल की खास रणनीति:-
अब तक इजरायल जब भी हमले करता है, वो पीछे की पूरी तैयारी कर लेता है. ऐसे में इस हमले से भी पहले इजरायल ने ईरान के रडार, एयर डिफेंस सिस्टम और कम्युनिकेशन चैनलों को या तो हैक किया या जाम कर दिया होगा. ईरान के S-300 और Bavar-373 जैसे सिस्टम सक्रिय होने से पहले ही टारगेट बन गए और कम्यूनिकेशन सिस्टम एक्टिव होने से पहले कट गया और सूचना नहीं मिल सकी.
इजरायल को हल्के में ले लिया:-
ईरान की सैन्य और धार्मिक लीडरशिप को शायद इस बात का भरोसा था कि इजरायल हमला करेगा, लेकिन सीमा पार नहीं करेगा. इतने बड़े डायरेक्ट हिट के लिए ईरान तैयार नहीं था. साल 1973 में मिस्र और सीरिया ने इजरायल को लेकर यही गलती की थी और उन्हें इजरायली सरप्राइज देखने को मिला था. ईरान का एयर डिफेंस सिस्टम शहरों और परमाणु ठिकानों के पास है, लेकिन इजरायल ने दूर-दराज़ के रणनीतिक लेकिन कम संरक्षित ठिकानों को पहले टारगेट किया.
मोसाद ने खुद को साबित किया:-
पिछले कुछ वक्त से मोसाद की सटीक कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे थे लेकिन एक बार फिर इजरायल की खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ ने खुद को साबित कर दिया. ये सिर्फ एयरस्ट्राइक नहीं बल्कि मोसाद की ईरानी खुफिया तंत्र पर भारी पड़ गई या फिर ईरान की टॉप लीडरशिप ने ग्राउंड इंटेलिजेंस रिपोर्ट को सही तरह से लिया नहीं. वो इसे सैन्य स्तर पर ट्रांसलेट करने में फेल रही. कहीं न कहीं ईरान की धार्मिक और सैन्य संस्थाओं में बंटी हुई ब्यूरोक्रेसी भी इजरायल के लिए फायदेमंद रही क्योंकि वहां निर्णय कई स्तर पर होते हैं और इजरायल की कार्रवाई कहीं ज्यादा तेज़ थी.