बैतूल

कोरकू समाज ने धूमधाम से मनाई वीर क्रांतिकारी सरदार गंजनसिंह सिलू की जयंती

जय-जौहार के साथ कोरकू आदिवासी समाज ने किया शहीदों को नमन

सतपुड़ा अंचल बैतूल।  कोरकू आदिवासी समाज के विभिन्न संगठनों के तत्वावधान में 3 अगस्त को क्रांतिकारी सरदार वीर गंजनसिंह सिलू कोरकू की जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई गई। कार्यक्रम की शुरुआत जिला स्तर पर मुठवा देव का खोटा पूजन से हुई। इसके उपरांत शहीद भवन के सामने स्थित शहीद स्मारक में शहीद गंजनसिंह के छायाचित्र पर माल्यार्पण कर पुष्पांजलि अर्पित की गई। इसके बाद शहीद स्मारक बैतूल से वाहन रैली निकाली गई जो बंजारीढाल पहुंची। यहां शहीद गंजनसिंह, रमको बाई, उनके दोनों बेटों, बुचा कोरकू और अन्य शहीदों की याद में पारंपरिक चावड़ी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर राजमले दरश्यामकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में बैतूल जिले का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। यहां आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ अद्वितीय जन आंदोलन छेड़ा था। 1930 में बैतूल जिले की घोड़ाडोंगरी में जंगल सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी। आदिवासी जंगल कानून तोड़ने के लिए जंगलों में जाकर पेड़ काटते थे और विरोध स्वरूप वहीं बैठ जाते थे। इस आंदोलन का नेतृत्व बंजार ढाल के गंजनसिंह कोरकू ने किया था। खुशराज भूरी-भाकलू कोरकू ने बताया कि गंजनसिंह सिलू कोरकू का नाम बैतूल के आजादी के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। उन्होंने 22 अगस्त 1930 को बंजारीढाल में सैकड़ों आदिवासियों के साथ जंगल सत्याग्रह किया।

पुलिस और आंदोलनकारियों की हुईं थी मुठभेड़
जब शाहपुर पुलिस ने गंजनसिंह को गिरफ्तार करने की कोशिश की, तो पुलिस और भीड़ के बीच संघर्ष छिड़ गया। इस दौरान गंजनसिंह का हाथ पकड़ता देख उनकी बहन रमकी बाई ने शाहपुर के थानेदार को हंसिया मारकर जान ले ली। अगले दिन, 20 अगस्त 1930 को, पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच फिर मुठभेड़ हुई जिसमें कोवा आदिवासी शहीद हो गए। गंजनसिंह भागने में कामयाब रहे और उनकी गिरफ्तारी के लिए अंग्रेजी सरकार ने 500 रुपये का इनाम घोषित किया। अंग्रेजों ने गंजनसिंह को पकड़ने के सारे प्रयास किए लेकिन वे नाकाम रहे। आखिरकार, गंजनसिंह पचमढ़ी पुलिस की गिरफ्त में आ गए और उन्हें पांच साल के कठोर कारावास की सजा दी गई। गंजनसिंह का कालखंड 1930 और इसके आसपास के वर्षों में रहा जब उन्होंने अंग्रेजों को खूब छकाया।

गंजनसिंहकी थीअद्भुत क्षमताएं
विनेश बेठे और लाबूसिंह चिलाटी ने बताया कि गंजनसिंह के प्रसिद्धि के कारण कहा जाता है कि वे जादू टोना जानते थे और सम्मोहन विद्या के जानकार थे। अंग्रेज जब उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश करते थे, तो वे अदृश्य हो जाते थे। एक किंवदंती यह भी है कि गंजनसिंह अपने साथ थैलियों में चिरोठे के काले बीज रखते थे जिन्हें वे फेंकते ही मधुमक्खियां बन जाते थे। यही वजह थी कि वे लंबे समय तक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े।

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